भगवान सूर्य इस पृथ्वी के सभी जीवो का भरण-पोषण करते है | वे ही पेड़-पोधो को अपना प्रकाश उपलब्ध करवाते है, जिससे वे अपना भोजन बनाते है | यही भोजन, प्रक्रियाओं के द्वारा हम तक पहुँचता है | लेकिन यह बात बहतु कम लोग जानते है की भगवान सूर्य ने भी एक बार धरती पर जन्म लिया था | आज हम आपको इसके पीछे की पूरी कथा बताने जा रहे है |
भगवतगीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा की हे अर्जुन ! तुमने तो आज जन्म लिया है और संभवतः तुम उन्ही लोगो को जानते हो, जो तुम्हारे सामने आज है | तुम अपने पूर्व जन्म के बारे में नहीं जानते हो, तुम्हे सिर्फ यही जन्म याद है | लेकिन मैं... अजर, अमर, अविनाशी हूँ | मुझे अपने सारे जन्म याद है | तुमने तो आज जन्म लिया है पार्थ ! लेकिन मैं... तो सृष्टि के निर्माण से भी पहले था | क्योंकि मैं अजन्मा हूँ | मेरे ही निर्देश पर सूर्य का जन्म हुआ था | यही वह वाक्य था जिसके बाद अर्जुन ने महाभारत के युद्ध में भाग लिया था |
कृष्ण अर्जुन को कहते है की हे धनञ्जय ! सतयुग में देव और दानवो के बीच युद्ध हुआ करते थे | एक बार देत्यो का नेतृत्व विशेष राक्षस ने किया | जिसके कारण पुरे देव लोक में में भय का माहौल बन गया | कुछ समय उपरांत सभी राक्षसों ने देवलोक पर आक्रमण कर दिया | जिस कारण सभी देवता भय के मारे भगवान विष्णु के पास गए |
वहां उन्होंने सूर्य भगवान को किसी स्त्री के गर्भ से जन्म लेने के लिए कहा | लेकिन सूर्य ऐसा नहीं कर सकते थे | क्योंकि वह एक जलता हुआ अग्निपिंड थे | इसलिए उन्होंने महर्षि कश्यप के पास अपने भक्त देवर्षि नारद को भेजा | देवताओ की व्यथा लेकर देवर्षि नारद कश्यप मुनि के आश्रम में पहुंचे और संकट के बारे में बताया | नारद ने सलाह दी कि इस संकट से सूर्य के समान तेजस्वी और बलशाली सत्ता ही मुक्ति दिला सकती है |
यदि स्वयं भगवान सूर्य धरती पर जन्म लेते है और देवताओ का प्रतिनिधित्व करते है तो बात बन सकती है | इसलिए सूर्य के जन्म के लिए देवर्षि नारद ने मुनि कश्यम को अपनी पत्नी को समझाने को कहा | कश्यप की पत्नी अदिति थी वह इसके लिए तैयार हो गयी | उस युग में केवल अदिति ही ऐसी महिला थी, जो अपने सतीत्व की वजह से सूर्य के तेज को अपने गर्भ में धारण कर सकती थी | अदिति ने भगवान सूर्य की घोर तपस्या की और तप, त्याग और ध्यान से उसने भगवान सूर्यदेव को मनाया और उन्हें पुत्र रूप में जन्म लेने का आग्रह किया |
भगवान सूर्य ने अदिति को तथास्तु कहा और अंतर्धान हो गए | कुछ ही दिनों बाद सूर्य अदिति के गर्भ में आ गए | समय आने पर अदिति ने देखा कि उसके शरीर से दिव्य तेज निकल रहा है | अदिति से जन्मा होने के कारण उस बालक का नाम ‘"आदित्य" रखा गया | आदित्य तेजस्वी और बलशाली रूप में ही बड़े हुए | इंद्रदेव ने आदित्य को अपना सेनापति नियुक्त कर दिया और उन्होंने दैत्यों पर आक्रमण करने का आदेश दिया |
आदित्य के तेज के समक्ष दैत्य अधिक देर तक नहीं टिक पाए और जल्दी ही अपने प्राण बचाकर पाताल लोक में छिप गये | सूर्य के प्रताप और तेज से स्वर्गलोक पर फिर देवताओं का अधिकार हो गया | सभी देवताओं ने फैसला किया की आदित्य को जगत के पालक और ग्रहराज के रूप में स्वीकार कर लिया जाये | जिससे समय-समय पर वह देवताओ की रक्षा भी कर सके |